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बाली ने कई बड़े योद्धाओं को हराया - परंतु हनुमानजी से क्यों हारे, बाली और हनुमान जी का युद्ध कैसे हुआ 

हिंदू धर्म और ग्रंथ पुराणों के अनुसार आपने ऐसे बहुत सारे युद्ध के वाक्य सुने होंगे परंतु आज की इस लेख के माध्यम से हम आपको एक ऐसे युद्ध के बारे में बतलाने जा रहे हैं। जिसका संबंध प्रभु श्री राम भक्त हनुमान जी से है। हनुमान जी अगर इस युद्ध में १००वां भाग बल मेसे अपने 10वां भाग शक्ति का प्रयोग ना करते तो इस पूरी सृष्टि के साथ किष्किंदा पूरी के सम्राट बाली का अंत निश्चित ही था। 

हिंदू धर्म सबसे प्राचीन काल से चला आ रहा है। और यह बात आज मॉडर्न साइंस भी मान रही है। आपको बता दें कि पूरे भारतवर्ष भर में ऐसे बहुत सारे आपको, अवशेष देखने को मिलेंगे जिसके माध्यम से आज हम सहज ही अनुमान लगा सकते हैं। कि सनातन धर्म कितना महान पुराना और सबसे अच्छा था, और इसका सबसे प्रखर प्रमाण हमको रामायण और महाभारत में मिलता है। और इन्हीं में से एक कथा भी मिलती है। हनुमानजी और बाली का युद्ध, तो चलिए आप भी जानिए विस्तार से इस युद्ध की कथा के बारे में और क्या है इसके पीछे की कहानी

किष्किंधा पुरी के राजा बाली और उसके भाई सुग्रीव के बारे में आप सब जानते ही होंगे और दोनों ही परम पिता ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे, बाली सुग्रीव का भाई था, अप्सरा तारा का पति भी था, अंगद बालिका पुत्र था, देवराज इंद्र का धर्मपुत्र भी था, और अत्यंत शक्तिशाली होने के कारण बाली के सन्मुख जो भी कोई लड़ने आता तो उसकी आदिशक्ति बाली में समाहित हो जाती, और इसके कारण बाली से लड़ने वाला शक्ति हीन होकर मारा जाता।

बाली, शक्ति का राज क्या था? 

प्राचीन रामायण कथा के अनुसार बाली के धर्म पिता देवराज इंद्र के माध्यम से बाली को एक अत्यंत स्वर्ण हार की प्राप्ति हुई थी। और इसी कारणवर्ष बाली अत्यंत शक्तिशाली होने के साथ ही हर एक युद्ध में अजय होता था। क्या था बाली के शक्ती का राज़? परम पिता ब्रह्मा जी ने इस हार को मंत्रोउच्चारण करके बाली को वरदान के स्वरूप में दे दिया था। यह स्वर्ण हार को पहनने के पश्चात बाली जिस किसी भी युद्ध में शत्रु का सामना करेगा, तो शत्रु की आधी शक्ति बाली को प्राप्त होगी। और इस कारणवर्ष बाली हर युद्ध में अजय रहता था।

बाली के सामने कई योद्धाओं को हार का सामना करना पड़ा

बाली की इस अद्भुत शक्ति के कारण, बाली ने कई योद्धाओं को हराया था, बड़े-बड़े योद्धाओं को हार का सामना करना पड़ता था। तत्पश्चात हजार हाथियों का बल रखने वाले राक्षस दुदुंबी नाम के असुर का भी वध बाली ने किया था, बाली से बदला लेने गए दुदुंबी के भाई ने बाली को ललकारा तो बाली ने उस मायावी को भी एक गुफा के अंदर मार दिया, तत्पश्चात रावण जैसे योद्धा ने भी बाली से युद्ध करने की ठान ली। परंतु बाली ने रावण को अपनी आंख में दबाकर 6 महीने तक घुमाया तत्पश्चात रावण को हार मानकर बाली से मित्रता करनी पड़ी।

श्री राम, बाली के सामने क्यों नहीं आए

एक समय जब बाली और मायावी राक्षस के बीच युद्ध के पश्चात सुग्रीव ने समझा कि बाली की मृत्यु हो गई है। तो सुग्रीव को राजा घोषित किया गया तत्पश्चात अचानक से बाली के वापस राजभवन में आने से बाली के मन में कुछ संशई उत्पन्न हुआ, तो सुग्रीव पर गदा से प्रहार किया और सुग्रीव को किशकिंदापुर छोड़कर के जाना पड़ा। तत्पश्चात सुग्रीव ने अपनी पीड़ा हनुमान जी को सुनाएं और हनुमान जी ने सुग्रीव को प्रभु श्री राम जी से मिलाया और सुग्रीव ने प्रभु श्री राम जी को बाली की अद्भुत छीनने वाली शक्ति के बारे में भी बताया, राम भी बाली के सामने नहीं आए, तत्पश्चात प्रभु श्री राम जी ने ऐसी योजना बनाएं कि बाली के सन्मुख ना आते हुए प्रभु श्री राम जी ने बाली का वध किया, उस समय बाली और सुग्रीव के बीच मल्लयुद्ध चल रहा था।

यहां पर प्रभु श्री राम जी ने कोई भी अपराध नहीं किया था और साथ ही बाली को दंड देना भी उचित था। परंतु फिर भी बाली के मन में एक दंश था, की प्रभु श्री राम जी ने मुझ पर छुपकर वार किया है। तत्पश्चात प्रभु श्री राम जी ने बाली को यह वचन देते हुए कहा, कि तुम्हारी इस पीड़ा का हम अवश्य समाधान करेंगे, जब द्वापर युग में प्रभु श्री राम जी ने श्री कृष्ण का अवतार धारण किया उस समय जीवन के अंत काल में एक पेड़ के छांव में विश्राम करते हैं। तब यही बाली द्वापर युग में एक जरा नामक बहेलिया रूप में जन्म लेते हैं। तत्पश्चात योग निद्रा में विश्राम कर रहे श्री कृष्ण को एक हिरण समझ करके उस पर तीर छोड़ देते हैं। और इसी प्रकार से बाली के मन का दंश या बदला पूर्व होता है।

बालिका हनुमान जी से हुआ जब सामना

हनुमानजी और बाली के बीच का एक प्रसंग हमको देखने को भी मिलता है। कई बड़े योद्धाओं को पराजित करने के पश्चात बाली को यह घमंड हुआ था कि पूरे विश्व भर में उसे कोई भी हरा नहीं सकता और यहां तक कि कोई उसका सामना तक नहीं कर सकता। उस समय बाली अपनी ताकत के नशे में चूर होकर के चिल्लाता हुआ जंगल के वन में पहुंचा और वहां के लोगों को धमकाने लगा कि कोई है जो बाली के सामने युद्ध कर सके, किसी ने अपनी मां का दूध पिया है। तो बाली के सामने द्वंद युद्ध करें। उसी वन में प्रभु श्री राम भक्त हनुमान जी || श्री राम जय राम जय जय राम || नाम का जप कर रहे थे।

हनुमान जी उसी वन में तपस्या कर रहे थे। और बाली के इस प्रकार से बार-बार चिल्लाने के कारण हनुमान जी की तपस्या में विघ्न पढ़ने लगा, तत्पश्चात हनुमान जी ने बाली को समझाया, हे वानर राज आप अति बलशाली हो। और आपको कोई भी हरा नहीं सकता। इसमें कोई भी संदेह नहीं है। परंतु आप इस प्रकार से चिल्ला क्यों रहे हो।

हनुमान जी के इस प्रकार से समझाने पर बाली अचानक से भड़क गया और हनुमान जी को भी चुनौती देने लगा और यहां तक की जिस व्यक्ति की तू भक्ति करता है। मैं उन्हें भी पराजित कर सकता हूं। हनुमान जी प्रभु श्री राम जी के भक्त हैं। और ऐसे में उनके आराध्य प्रभु श्री राम जी का मजाक उड़ाता देख हनुमान जी को क्रोध आना स्वाभाविक था। तत्पश्चात हनुमान जी ने राम नाम का जप करते हुए बाली की चुनौती स्वीकार कर ली। तत्पश्चात तय हुआ कि दोनों के बीच प्रातः काल सूर्योदय होते ही द्वंद युद्ध का दंगल होगा।

प्रातः काल सूर्योदय होने के पश्चात हनुमान जी तैयार होकर के दंगल के लिए प्रस्थान कर ही रहे थे। परंतु अचानक ब्रह्मा जी हनुमान जी के समक्ष प्रकट हुए। और हनुमान जी से आग्रह किया कि आप बाली की चुनौती स्वीकार ना करें और युद्ध के अखाड़े में ना जाए। तत्पश्चात हनुमान जी ने ब्रह्मा जी से कहा कि यदि बाली ने मेरे बारे में कहा होता तो एक समय पर मैं उसे क्षमा कर सकता था। परंतु बाली ने मेरे आराध्य प्रभु श्री राम जी के बारे में कहा है। और चुनौती दी है। जिसे मैं सहन नहीं कर सकता। ऐसे में बाली की चुनौती को अस्वीकार करता हूं तो पूरी दुनिया मेरे बारे में क्या समझेगी। और इसीलिए बाली का सामना करना परम आवश्यक है।

हनुमान जी की बात सुनकर ब्रह्मा जी ने कहा ठीक - है। यदि आप दंगल के अखाड़े में प्रस्थान कर ही रहे हैं। तो आप अपनी शक्ति का 10वां हिस्सा ही लेकर प्रस्थान करें। और शेष अपनी शक्ति का 90% हिस्सा अपने आराध्य प्रभु श्री राम जी के चरणों में समर्पित करें। और दंगल से आने के पश्चात अपनी शक्ति को पुनः ग्रहण कर ले। हनुमान जी ने ब्रह्मा जी का मान रखते हुए अपनी शक्ति का १०वां हिस्सा ही लेकर बाली के दंगल में प्रस्थान कर गए।

हनुमान जी ने जैसे ही दंगल के अखाड़े में अपना पांव रखा। तत्पश्चात ब्रह्मा जी के वरदान के अनुसार हनुमान जी की आधी शक्ति बली के शरीर में समाहित हो गई। हनुमान जी की आधी शक्ति वाली में समाहित होने के कारण, बाली को आधा बल का सैलाब उमड़ने ने जैसे लगने लगा। और साथ ही अपने शरीर में अथा शक्ति का एहसास भी होने लगा जैसे कि मानो शरीर में शक्ति का समंदर तूफान मचा रहा हो। और यहां तक कि कुछ समय पश्चात बाली को लगने लगा कि उसके शरीर के प्रत्येक अंग फट रहे हैं। और शरीर के प्रत्येक भाग से खून निकलने ही वाला है।

बाली की इस पीड़ा को देख अचानक ही ब्रह्मा जी वहां पर प्रकट हुए और ब्रह्मा जी ने बाली से कहा कि अगर तुम अपने आप को जीवित रखना चाहते हो। तो अभी तत्काल ही हनुमान जी के सामने से कोसों दूर भाग जाओ, और यही तुम्हारे लिए लाभकारी रहेगा। अन्यथा तुम्हारा पूरा शरीर फट जाएगा उस समय वाली कुछ समझ नहीं पा रहा था। परंतु परम पिता ब्रह्मा जी का इस प्रकार प्रकट होना बाली को लगा कि कुछ तो गड़बड़ अवश्य है। और ब्रह्मा जी की बात मानते हुए बाली वहां से तुरंत ही कोसों दूर भाग गए।

कोसों दूर भागने के पश्चात बाली को थोड़ा विराम मिला और शरीर सामान्य होने के कुछ ही समय पश्चात परम पिता ब्रह्मा जी बाली के समक्ष प्रकट हुए। तब ब्रह्मा जी ने बाली को समझाया कि तुम अपने आप को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ योद्धा और सर्वशक्तिमान समझ रहे थे। परंतु तुम्हारा शरीर हनुमान जी के शक्ति का एक छोटा सा हिस्सा भी संभाल नहीं पाया और ब्रह्मा जी ने बाली को यह भी बताया कि हनुमान जी अपनी शक्ति का केवल दसवां हिस्सा ही तुम से लड़ने दंगल के अखाड़े में आए थे। और विचार करो कि हनुमान जी अपनी संपूर्ण शक्ति लेकर तुम से लड़ने आते तो तुम्हारा क्या हुआ होता।

परम पिता ब्रह्मा जी की यह बात जानकर बाली को अपनी भूल का एहसास हुआ। तत्पश्चात बाली ने हनुमान जी को दंडवत प्रणाम किया और बोले कि हनुमान जी आप में अथाह बल होते हुए भी हनुमान जी आप शांत स्वभाव वाले है। और दिन-रात, श्री राम का भजन, गाने के साथ राम नाम का जप भी करते हैं। परंतु एक मैं हूं जो आपकी एक बाल के बराबर भी नहीं हूं। और आप को ललकार ने की भूल कर रहा था। और आपको जाने अनजाने में क्या क्या कहा गया, मुझे क्षमा करें प्रभु श्री राम भक्त हनुमान जी।

|| जय श्री राम ||

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