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भगवान शिव के त्रिशूल का रहस्य, केसे आया भगवान शिव के पास त्रिशूल और डमरू

भगवान शिव अपने हाथ में 'त्रिशूल' और डमरू क्यों धारण करते हैं। शिव के त्रिशूल का रहस्य। और कैसे अस्तित्व में आया 'भगवान शिव' के हाथ में त्रिशूल और डमरू. आपने विभिन्न प्रकार की पुराणों और मान्यताओं के अनुसार त्रिशूल और डमरू के बारे में सुना होगा। परंतु आज जो हम आपको एक ऐसी ही पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव के त्रिशूल और डमरु की 'रोचक' कथा के बारे में बताने जा रहे हैं। 

यह सब जानने के पश्चात आपकी 'हिंदू धर्म' के प्रति आस्था और विश्वास और भी बना रहेगा। यह सब आपके लिए जानना इसलिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। क्योंकि आज के वर्तमान समय में पूरे भारत वर्ष भर में कुछ लोग 'हिंदू' धर्म से जुड़े देवी देवताओं की 'मूर्तियां' खंडित करने का षड्यंत्र कर रहे हैं। और भगवान शिव के त्रिशूल और डमरु का भि गलत मतलब निकालने का प्रयास कर रहे हैं। 

इन सब में दुर्भाग्य की बात ये है। कि (Bollywood) बॉलीवुड जैसी फिल्मों में भी भगवान शिव का मजाक उड़ाया जा रहा है। और यह सब देखने के पश्चात समय आ गया है। की ऐसी फिल्मों का बहिष्कार करें और साथी विरोध भी करें. हमारा कहना सारी फिल्मों का बहिष्कार नहीं। कुछ 'फिल्में' अच्छी भी है। जिसमें 'बाहुबली' फिल्म में भगवान शिव का मान सम्मान बढ़ाया और यह अब तक की सबसे बड़ी फिल्म रही। 

मित्रों आज की रोचक कथा के बारे में जाने के लिए आर्टिकल को अंत तक पड़ेगा और साथ ही इसी से जुड़ा वीडियो भी हमने आपको उपलब्ध कराया है। आप उन Video को भी देख सकते हैं। और साथ ही चैनल को SUBSCRIBE करें.

'भगवान' शिव के हाथ में हमने हमेशा से ही त्रिशूल धारण करते हुए देखा है। प्राचीन काल में बने मंदिरों की मूर्तियों पर भी महादेव शिव के हाथ में त्रिशूल और डमरू को देखा है। परंतु यह कोई सामान्य त्रिशूल नहीं। अपितु इसमें कई शक्तियां समाहित है। भगवान शिव के त्रिशूल में कई रहस्य छिपा है।

हिंदू धर्म 'ग्रंथ' और प्राचीन पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अन्य कई देवी-देवता त्रिशूल को धारण करते हैं। परंतु जब भगवान शिव जी त्रिशूल को धारण करते हैं। इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। भगवान शिव अन्य कई अस्त्र और 'शस्त्र' चलाने में निपुण है। परंतु शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव का प्रमुख अस्त्र त्रिशूल बताया गया है। और भगवान शिव के साथ त्रिशूल की भी पूजा की जाती है। अति पाप और अत्याचार बढ़ने पर असुरों का संहार करने के लिए भगवान शिव त्रिशूल का प्रयोग करते हैं।

शिव के त्रिशूल का रहस्य

भगवान शिव के पुराणों में वर्णन मिलता है। 'भगवान शिव की उत्पत्ति' के समय जब 'सृष्टि' के आरंभ काल में भगवान शिव शंकर जी प्रकट हुए तब उनके साथ तीन गुण भी प्रकट हुए थे। वे इस प्रकार है। रजोगुण, तमोगुण और सतगु यहां पर आपको बता दे कि इन तीनों गुणों का वर्णन आपको 'श्रीमद्भगवद्गीता' में भी मिलता है। जहां पर आप इसको विस्तार से जान सकते हैं। परंतु आज हम 'शिव के त्रिशूल का 'रहस्य' के बारे में बात कर रहे हैं। ( आगे बढ़ते हैं ) पर यही तीन शूल मिलकर भगवान शिव जी के शुल बने ( यानी कि त्रिशुल )

भगवान शिव के दूसरे हाथ में 'डमरू' क्यों होता है।

भगवान शिव के दूसरे हाथ में डमरु रहने का कारण माना जाता है। कि जब 'सृष्टि' के आरंभ काल में माता 'सरस्वती' ने वीणा बजाई तो वीणा के स्वर से पूरे सृष्टि भर में ध्वनि का संचार हुआ, एक प्रकार से ध्वनि को जन्म दिया। तत्पश्चात भगवान शिव जी 'नृत्य' करने लगे और 14 बार डमरु बजाने से एक ध्वनि का संगीत उमड़ने लगा। जिस कारण वर्ष संगीत के, ताल और सुर का 'आविष्कार' हुआ। इसी प्रकार से भगवान शिव जी के डमरू का 'जन्म' हुआ।

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