नासिक (त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग) मंदिर का अद्भुत रहस्य | Anciant Temple Of Trayambakeshwar Jyotirlinga

रामायण और महाभारत काल से जुड़े त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग (Trayambakeshwar Jyotirlinga) का जाने अद्भुत और दुर्लभ रहस्य. कहा जाता है कि त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के समक्ष रखे हुए सोने हीरे और रत्न जड़ित मुकुट को महाभारत के पांडवों द्वारा स्थापित करवाया गया था। आखिर क्या है इसका रहस्य. जानेंगे आगे. 12 साल बाद एक बार होता है  कुंभ मेला, औरंगजेब द्वारा हमले के पश्चात भी, आज भी हर किसी को हैरान करती है। इस मंदिर की वास्तुकला. आखिर किसने करवाया था इस मंदिर का पुनः जीर्णोद्धार, दोस्तों इस मंदिर से जुड़े अन्य बहुत सारे रहस्य है जो आप आगे जाने वाले हैं। त्रंबकेश्वर मंदिर को आप वीडियो के द्वारा भी देख सकते हैं।

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त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग (Trayambakeshwar Jyotirlinga) अद्भुत रहस्य

त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग को 12 ज्योतिर्लिंगों (Jyotirlinga) में से एक माना जाता है। गोदावरी नदी के किनारे बने त्र्यंबकेश्वर मंदिर का निर्माण अद्भुत और आकर्षक प्रचलित त्र्यंबकेश्वर मंदिर महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित है। नासिक स्टेशन से 34 किलोमीटर दूर गौतमी नदी के तट पर स्थित काले पत्थरों द्वारा निर्मित, मंदिर पर उकेरी गई सुंदर नकाशी और चौकोर मंडप के सिवा मंदिर की अद्भुत संरचना और भव्यता के लिए पूरे विश्व भर में प्रचलित है। 

आखिर किसके द्वारा बनवाया गया त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का मुकुट

त्र्यंबकेश्वर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि गौतम ऋषि के तपस्या से प्रसन्न होकर त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग में स्वयं ब्रह्मा विष्णु महेश ये तीनों देवता विराजमान है। इस मंदिर के भीतर एक छोटा सा गड्ढा है जिसके अंदर तीन छोटे-छोटे लिंग प्रदर्शित हो रहे हैं। और इन तीनो लिंगो को त्रिदेव यानी कि {ब्रह्मा विष्णु और शिव} का प्रतीक माना जाता है। त्र्यंबकेश्वर मंदिर की दीवारों पर भगवत गीता के 18 अध्याय के श्लोक लिखे हुए देखे जा सकते हैं। इस मंदिर के भीतर स्वर्ण कलश और शिवलिंग के पास हीरों और अन्य कीमती रत्नों से जड़े मुकुट रखे हैं। जिसका अपना पौराणिक महत्व है। त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से त्रिदेव की पूजा का फल प्राप्त होता है। और मोक्षद्वार खुल जाते हैं।

रामायण, महाभरत काल से जुड़ा है त्रंबकेश्वर

भारत की दूसरी बड़ी नदी गोदावरी तट पर स्थित है पंचवटी जिसका संबंध रामायण काल से है। जहां पर गौतम ऋषि के तब द्वारा प्रवाह होने वाली गोदावरी नदी के तट पर 12 साल में एक बार होता है कुंभ मेला, त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का मुकुट त्रंबकेश्वर, ज्योतिर्लिंग के समक्ष, {हीरे, मोती कीमती रत्नो} को देखा जा सकता है। और और कहा जाता है कि इन रत्नजड़ित मुकुट को महाभारत के पांडवों द्वारा स्थापित करवाया गया था।

आखिर किसके द्वारा हुआ त्र्यंबकेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार औरंगजेब के हमले के पश्चात भी इस मंदिर की सुंदरता आज भी देखी जा सकती है। जिसे पेशवा के नाम से जाने वाले बालाजी (श्रीमंत नानासाहेब पेशवा) द्वारा पुनः जीर्णोद्धार करवाया गया था। 1755 से 1786 के बीच बनवाया था। 

त्रिंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग 10वां स्थान 

भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग को 10वां स्थान माना जाता है। और इसी त्र्यंबकेश्वर मंदिर के समीप ब्रह्मगिरी नामक पर्वत से गोदावरी नदी प्रवाह होती है। जिस प्रकार उत्तर भारत में प्रवाह होने वाली नदी गंगा कहा जाता है। उसी प्रकार का दक्षिण में प्रवाह होने वाली पवित्र नदी को गोदावरी कहा जाता है। और इसी स्थान पर है यह प्रचलित त्रंबकेश्वर मंदिर जो 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है।

त्रंबकेश्वर मंदिर कैसे पहुंचे

त्रंबकेश्वर मंदिर तक जाने ने के लिए आपको सबसे पहले महाराष्ट्र के नासिक पहुंचना होता है। नासिक भारत के हर क्षेत्र रेल तथा सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है आप बड़ी आसानी से पहुंच सकते हैं। यदि आप हवाई मार्ग से पहुंचने की योजना बना रहे हैं तो संभाजी नगर तथा पुणे हवाई अड्डा समीप है जिसके माध्यम से आप यहां तक पहुंच सकते हैं। त्रिंबकेश्वर गांव नासिक से कुछ ही दूरी पर स्थित है। नासिक पहुंचकर,  से त्र्यंबकेश्वर के लिए बस, ऑटो या टैक्सी द्वारा पहुंचा जा सकता है।

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