रामायण और महाभारत कालीन के ये अस्त्र शास्त्र यंत्र और दिव्यास्त्र, जाने अद्भुत रहस्य
प्राचीन काल में प्रयोग किए जाने वाले ये घातक अस्त्र शस्त्र और दिव्यास्त्र इनमें से कुछ ही योद्धाओं के पास हुआ करते थे.
आखिर कौन थे वे योद्धा जिनके पास थे ये, घातक अस्त्र शस्त्र और दिव्यास्त्र, जो पल भर युद्ध में प्रलय मचा सकते थे।

प्राचीन काल में जो अस्त्र और शस्त्र हुआ करते थे, वे आधुनिक यानी कि वर्तमान समय में वैसे ही अस्त्र और शस्त्र देखे जा सकते हैं। अंतर बस इतना, की शस्त्र हाथों द्वारा चलते थे, परंतु अस्त्र और दिव्यास्त्र को मंत्रों द्वारा संचालित किया जाता था। इन अस्त्र-शस्त्र और दिव्यास्त्रो का अधिकतर प्रयोग रामायण और महाभारत युद्ध भूमि में भरपूर उपयोग किया जाता था। जो हम रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों द्वारा सुनते आए हैं। 

आखिर कैसे प्राप्त किए जाते थे ये दिव्यास्त्र
वीडियो के माध्यम से भी आप देख सकते हैं:-

सर्वप्रथम अस्त्र
अस्त्र ऐसे हथियारों को कहा जाता है। जो किसी मंत्र या यंत्र के द्वारा चलाए जाते थे. जो बहुत ही भयानक और प्रभावशाली हुआ करते थे. इनसे चारों दिशाओं में हाहाकार भी मच सकता था। जैसे वर्तमान समय युद्ध में चलाए जाने वाले यंत्र को तोप कहां जाता है। तो वही मंत्र जैसे ब्रह्मास्त्र, पाशुपतास्त्र, पर्जन्यास्त्र जैसे आदि नामों से जाना जाता है।

जबकि दूसरे अस्त्र को हाथों द्वारा चलाए जाने के कारण उनको शस्त्र कहे जाते थे. और यह भी दो प्रकार के हुआ करते थे, जोकि यंत्र और शस्त्र के नाम से जानते हैं, 
और इन यंत्र शस्त्र में उपयोग किए जाने वाले शस्त्र कुछ इस प्रकार के हुआ करते थे, जोकि शक्ति, तोमर, पाश, बाण सायक, शण, तीर, परिघ, भिन्दिपाल, नाराच आदि नामों से जाने जाते थे।
तो वहीं दूसरी ओर हस्त शस्त्र में उपयोग किए जाने वाले शस्त्र को,
ऋष्टि, गदा, चक्र, वज्र, त्रिशूल, असि, खंजर, खप्पर, खड्ग, चन्द्रहास, फरसा, मुशल, परशु, कुण्टा, शंकु, पट्टिश, वशि, तलवार, बरछा, बरछी, कुल्हाड़ा, चाकू, भुशुण्डी आदि हुआ करते थे.

इन चंद योद्धाओं को ही था दिव्यास्त्र चलाने का ज्ञान
आखिर कौन थे वे योद्धा, जाने
प्राचीन काल मैं चंद योद्धाओं को ही सिखाई जाती थी यह विद्या. 
जो कि मंत्रों द्वारा संचालित होने वाले अस्त्र और दिव्यास्त्र हुआ करते थे, ब्रह्मास्त्र चलाने की विधा कर्ण ने परशुराम से शिक्षा ली थी, तो द्रोणाचार्य ने कौरवों समेत पांचों पांडवों को इसकी शिक्षा दी थी, परंतु ब्रह्मास्त्र विद्या कर्ण, अर्जुन, भीष्म, द्रोणाचार्य और अश्वत्थामा के सीवा अन्य किसी को भी नहीं आई. 

अस्त्र भी दो प्रकार के थे. एक दिव्यास्त्र और दूसरा यांत्रिकास्त्र.
और अस्त्र भी विभिन्न प्रकार के हुआ करते थे. और हर अस्त्र पर देवी देवताओं का स्वरूप हुआ करता था. जो की कड़ी तपस्या के पश्चात प्राप्त हुआ करता था। दिव्यास्त्र को मंत्रों द्वारा चलाए जाते थे. मंत्र और तंत्र द्वारा ही इसे चलाया जा सकता था. इन दिव्यास्त्रों में प्रमुख रूप से आग्नेयास्त्र, पर्जन्य, वायव्य, पन्नग, गरूड़, नारायणास्त्र, पाशुपत, ब्रह्मशिरा, एकागिन्न अमोघास्त्र और ब्रह्मास्त्र हुआ करते थे.

जानते हैं किस प्रकार होता था इन दिव्यास्त्रों का असर:
आग्नेयास्त्र
आग्नेयास्त्र के प्रयोग से अग्नि की वर्षा शुरू हो जाती थी, तो पर्जन्य से भारी वर्षा होने लगती थी. वायव्य अस्त्र से आंधी तूफान बवंडर आ जाता था. इन अस्त्रों के प्रयोग से युद्ध स्थल में इतना घातक वातावरण उत्पन्न होता था. की इन अस्त्रों से बचने के लिए हर योद्धाओं को विभिन्न प्रकार के सुरक्षा कवच का उपयोग करना पड़ता था. जिसमें महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण के कारण पांडवों की सुरक्षा हुई थी.

ऐसे किए जाते थे दिव्यास्त्रो को प्राप्त
हिंदू पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार, इन दिव्यास्त्रो का गलत और दुरुपयोग ना हो और किसी को क्षति पहुंचाने की ना हो इसलिए हर किसी को यह विद्या प्रधान नहीं की जाती थी. इन दिव्यास्त्रो को प्राप्त करने से पहले, कठिन तप, व्रत, उपवास, ध्यान आदि करके मन को अपने वश में करने और पांचों इंद्रियों को संचालित करने की शक्ति पाई जाती थी. जो व्यक्ति एकचित्त हो जाता वही दिव्यास्त्र प्राप्त कर पाता. वासवी शक्ति जो केवल इंद्र के पास थी. Video भी अवश्य देखिएगा.
|| जय श्री राम ||
|| हर हर महादेव ||
|| जय बजरंगबली ||

तो दोस्तों यह था हिंदू धर्म ग्रंथों कथाओं के अनुसार शास्त्रों के संबंध में जानकारियां, अन्य आर्टिकल को भी पढ़ें.

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